Wednesday, February 20, 2008

'मोहल्ले' में भसड

जे.एन.यू. में हमलोग अपने कुछ स्कूलों, सेंटरों में फोर्ड की फंडिंग को लेकर काफ़ी पहले से बहस और प्रतिरोध में लगे रहे हैं। मोहल्ला ब्लॉग पर अफलातून जी ने बौद्धिक साम्राज्यवाद की शिनाख्त आलेख में रिसर्च संस्थानों में फंड के स्रोत और उनसे रिसर्च एजेंडे पर होने वाले प्रभाव पर सार्थक बहस छेड़ी. जवाब में कुछ सीरियस चिंताएं, कुछ खुन्नस और कुछ तिलमिलाये राग उन्हें सुनने को मिल रहे हैं।

मोहल्ले में ही मीडिया की सोशल प्रोफाइलिंग पर दिलीप जी लगातार लिखते रहे हैं। हम अपने कैम्पस में उनकी नज़र से देखें तो तस्वीर उनसे आँख मिलाने लायक नहीं मिलती।

उच्च शिक्षा में तो सोशल-जेंडर प्रोफाइलिंग के अलावा वंशावली मिलाने की भी ज़रूरत है। सारे Disciplines की हालत यह है लगभग कि पूरे देश में कुछ ८-१० परिवार मिलकर सारे उम्दा विश्वविद्यालयों के डिपार्टमेंट संभाल रहे हैं।

1 comment:

EP Admin said...

हर गंभीर बातों को हंसी में उड़ा देना हमारी खासियत है....हमें जन्मघुट्टी मिली है चुप रहने की हमेशा मुस्कुराने की.... शायद इसी लिए हंसने का दिल है इतना की जितना कभी कोई नहीं हंसा इतना सरे दुर्भाव सारी चिंता सब की सब मज़बूरी अट्टहास बन कर शास्त्र बन जाये औने कण के पर्दों को फाड़ दे जो ठन्डे दिमाग से बैठ कर चीजों को तय कर लेते हैं बड़ी आसानी से....मेरे कमेन्ट को इस पोस्ट के सन्दर्भ में ना लेकर सभी संदर्भो में लिया जाये